हिन्दू पंचांग क्या है? (What Is Hindu Panchang?)
हिन्दू पंचांग क्या है? (What Is Hindu Panchang?)
हिन्दू पंचांग को हिन्दू कैलेंडर या पंजिका भी कहा जाता है। हिन्दू पंचांग एक चंद्र-सौर कैलेंडर है जिसका उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में किया जाता है। पंचांग प्राचीन काल में विद्वान ऋषियों और ज्योतिष शास्त्रियों द्वारा निर्मित एक हिन्दू कैलेंडर है जिससे तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण का पता लगाया जाता है।
तो आइए इस लेख में जानेंगे हिन्दू पंचांग और उस से जुड़े विभिन्न तथ्यों के बारे में और साथ ही जानेंगे उसके पांच प्रमुख अंगों को।
हिन्दू पंचांग की उत्पत्ति कैसे हुई?
वैदिक काल में ऋषियों ने समय का ध्यान रखने के लिए एक परिष्कृत पद्धति का निर्माण किया। वैदिक धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया जाए तो हमें समय निर्धारण के साथ साथ सूर्य और चन्द्रमा की गति तथा उसकी प्रकृति का साफ़ साफ़ ज्ञान उपलब्ध है।
प्राचीन काल में वैदिक अनुष्ठान के लिए समय का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण था जो कि आज भी हिन्दू धर्म में माना जाता है। यही वजह थी कि भारत वर्ष के विद्वान ऋषिओं ने समय का ठीक से ध्यान रखने के लिए सूर्य, चन्द्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों की गतिविधियों की गणना करके एक समयनिर्धारक प्रणाली का निर्माण किया। इसी समयनिर्धारक प्रणाली पर हिन्दू पंचांग भी आधारित हुआ।
हिन्दू पंचांग का मूल अर्थ?
पंचांग का अर्थ है – पांच अंग। हिन्दू पंचांग के पांच मुख्य अंग हैं। यह पांच अंग हैं:
- तिथि
- वार
- नक्षत्र
- योग
- करण
दैनिक पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र,योग और करण के अलावा सूर्योदय का समय, सूर्यास्त का समय, शुभ समय, हिन्दू माह और राहुकाल आदि का पता चलता है।
हिन्दू पंचांग के पांच अंग
हिन्दू पंचांग के पांच अंग विस्तार से इस प्रकार हैं:
तिथि
हिन्दू पंचांग के अनुसार जो समय चंद्र रेखांक को सूर्य रेखांक से 12 अंश (12 डिग्री) ऊपर जाने में लगता है, उसे तिथि कहा जाता है। कुल मिलकर 30 तिथियां होती हैं जिन्हे दो पक्षों में विभाजित किया गया है। यह दो पक्ष हैं – शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा कहलाती है और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या होती है। इन तिथियों के नाम इस प्रकार हैं:
- प्रतिपदा
- द्वितीया
- तृतीया
- चतुर्थी
- पंचमी
- षष्ठी
- सप्तमी
- अष्टमी
- नवमी
- दशमी
- एकादशी
- द्वादशी
- त्रयोदशी
- चतुर्दशी
- अमावस्या/पूर्णिमा
वार
हिन्दू पंचांग में वार का अर्थ दिन से है। वार का नामकरण सात ग्रहों के नामों पर रखा गया है। वार इस प्रकार हैं:
- सोमवार
- मंगलवार
- बुधवार
- गुरुवार
- शुक्रवार
- शनिवार
- रविवार
नक्षत्र
आकाश मंडल में तारों के समूह को नक्षत्र कहा जाता है। कुल मिलाकर 27 नक्षत्र होते हैं और 9 ग्रह इनके स्वामी कहलाते हैं। इन नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं:
- अश्विन नक्षत्र
- भरणी नक्षत्र
- कृत्तिका नक्षत्र
- रोहिणी नक्षत्र
- मृगशिरा नक्षत्र
- आर्द्रा नक्षत्र
- पुनर्वसु नक्षत्र
- पुष्य नक्षत्र
- आश्लेषा नक्षत्र
- मघा नक्षत्र
- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र
- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र
- हस्त नक्षत्र
- चित्रा नक्षत्र
- स्वाति नक्षत्र
- विशाखा नक्षत्र
- अनुराधा नक्षत्र
- ज्येष्ठा नक्षत्र
- मूल नक्षत्र
- पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र
- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र
- श्रवण नक्षत्र
- घनिष्ठा नक्षत्र
- शतभिषा नक्षत्र
- पूर्व भाद्र पद नक्षत्र
- उत्तर भाद्र पद नक्षत्र
- रेवती नक्षत्र
योग
योग 27 प्रकार के होते हैं। चन्द्रमा और सूर्य की दूरियों की स्तिथियों को योग कहा जाता है। 27 योग इस प्रकार हैं:
- विष्कुम्भ
- प्रीति
- आयुष्मान
- सौभाग्य
- शोभन
- अतिगण्ड
- सुकर्मा
- धृति
- शूल
- गण्ड
- वृद्धि
- ध्रुव
- व्याघात
- हर्षण
- वज्र
- सिद्धि
- व्यातीपात
- वरीयान
- परिघ
- शिव
- सिद्ध
- साध्य
- शुभ
- शुक्ल
- ब्रह्म
- इन्द्र
- वैधृति
करण
एक तिथि के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में करण होते हैं। कुल 11 प्रकार के करण होते हैं। यह करण इस प्रकार हैं:
- बव
- बालव
- कौलव
- तैतिल
- गर
- वणिज
- विष्टि (भद्रा)
- शकुनि
- चतुष्पाद
- नाग
- किस्तुघ्न
विष्टि (भद्रा) करण को शुभ कार्य नहीं किये जाते।
पंचांग का हिन्दू धर्म में महत्त्व
पंचांग का हिन्दू धर्म में एक खास महत्त्व है। पंचांग का उपयोग विभिन्न हिन्दू त्योहारों और शुभ मुहूर्तों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है। पंचांग का मुख्य उपयोग ज्योतिष शास्त्रियों और पंडितों द्वारा किया जाता है।
तो इस लेख में आपने हिन्दू पंचांग के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। आशा करता हूँ इस लेख से आपके ज्ञान में वृद्धि हुई होगी। कृपया इस लेख को दूसरों के साथ भी सांझां करें।
खुश रहें, स्वस्थ रहें…
जय श्री कृष्ण!
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Original link: One Hindu Dharma
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